•अंग्रेजों के लिए अंग्रेजी उनकी सिर्फ मातृभाषा और राष्ट्रभाषा है लेकिन
‘भद्र भारतीयों’ के लिए यह उनकी पितृभाषा, राष्ट्रभाषा, प्रतिष्ठा-भाषा,
वर्चस्व-भाषा और वर्ग-भाषा बन गई है। अंग्रेजी और क्रिकेट हमारी गुलामी
की निरंतरता के प्रतीक हैं।
•जैसे अंग्रेजी भारत की आम जनता को ठगने का सबसे बड़ा साधन है, वैसे ही
क्रिकेट खेलों में ठगी का बादशाह बन गया है।
•जैसे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में भोले लोग अपने बच्चों को अपना पेट
काटकर पढ़ाते हैं, वैसे ही लोग क्रिकेट-मैचों के टिकिट खरीदते हैं, टीवी
से चिपके बैठे रहते हैं और खिलाड़ियों को देवताओं का दर्जा दे देते हैं।
•हमारे नेता जैसे अंग्रेजी की गुलामी करते हैं, वैसे ही वे क्रिकेट के
पीछे पगलाए रहते हैं। अब देश में कोई राममनोहर लोहिया तो है नहीं, जो
गुलामी के इन दोनों प्रतीकों को खुली चुनौती दे।
•भारत में क्रिकेट किसी खेल की तरह रहे और अंग्रेजी किसी भाषा की तरह तो
किसी को कोई आपत्ति क्यों होगी ? लेकिन खेल और भाषा यदि आजाद भारत की
औपनिवेशिक बेड़ियाँ बनी रहें तो उन्हें फिलहाल तोड़ना या तगड़ा झटका देना
ही बेहतर होगा।
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